रमल शास्त्र के द्वारा सन्तान सम्बन्धी विचार

रमल शास्त्र के द्वारा हम जीवन के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर सकतें है। रमल शास्त्र में एक विशेष दिन अष्टधातु से चार चार पाँसों को लोहे की छड जोड़कर दो पाँसें बनतें हैं। पाँसों को प्रश्नकर्ता के प्रश्न करने के उपरान्त डालनें पर सौलह भाव का रमल प्रस्तार (रमल कुंडली) का निर्माण किया जाता है। सन्तान के लिये रमल प्रस्तार या रमल कुण्डली के पाँचवें घर से विचार किया जाता है। सन्तान से सम्बन्धित कुछ प्रश्नों के उत्तर निकालने के नियम यहाँ दिये जा रहे है, जो इस प्रकार हैं-

सन्तान की आयु सम्बन्धी प्रश्नों पर

यदि कोई व्यक्ति यह प्रश्न करें कि सन्तान दीर्घायु होगी अथवा अल्पायु?

अपने इष्ट का स्मरण करने के उपरांत पाँसे डालकर प्रस्तार (रमल कुंडली या कुरा) तैयार करें। फिर प्रस्तार की पाँचवीं तथा सातवीं शक्ल को जोड़कर नई शक्ल का निर्माण करें। यदि यह शक्ल शुभ हो तो संतान दीर्घायु होगी, यदि अशुभ हो तो अल्पायु होगी और यदि मध्यम हो तो मध्यम आयु वाली होगी- यह कहना चाहिए।

रमल शक्लों की शुभता व अशुभता रमल ज्योतिष में शक्लों के गुणधर्मों में वर्णित होता है l

सन्तान का होना :

यदि कोई व्यक्ति यह पूछे कि ‘मेरे सन्तान होगी या नहीं?’

तो पाँसे डालकर प्रस्तार तैयार करें। फिर प्रस्तार की पहली तथा पाँचवीं शक्ल को जोड़कर एक शक्ल बनायें तथा छठी और सातवीं को जोड़कर दूसरी शक्ल बनायें। फिर इन दोनों को जोड़कर एक शक्ल तैयार करें।

यदि यह शक्ल शुभ ‘दाखिल’ हो तो सन्तान अवश्य होगी। यदि अशुभ ‘दाखिल’ हो तो सन्तान होकर मर जायेगी। यदि शुभ ‘साबित’ या शुभ ‘मुन्किलीव’ हो तो सन्तान देर से होगी। यदि अशुभ ‘मुन्किलीव’ हो तो गर्भपात होगा और यदि इनसे भिन्न ‘खारिज’ शक्ल हो तो सन्तान निश्चित रूप से नहीं होगी ऐसा समझना चाहिए।

कितनी सन्तानें

यह प्रश्न करने पर कि मेरे कितनी सन्तानें होगी? तो पाँसे डालकर रमल प्रस्तार बनायें। फिर प्रस्तार की पहली तथा सातवीं शक्ल को जोड़कर एक शक्ल तैयार करें। यदि वह शक्ल सूर्य की हो तो 4 सन्तानें होगी, यदि बुध की हो तो 2, चन्द्रमा की हो तो 5, शनि की हो तो 1, वृहस्पति की हो तो 3 और मंगल की हो तो 4 संतानें होंगी- यह कहना चाहिए।

गर्भ है या नहीं?

यदि कोई व्यक्ति यह प्रश्न करे कि मेरी स्त्री को गर्भ है अथवा नहीं? तो पाँसे डाल कर प्रस्तार तैयार करें। फिर प्रस्तार की पहली तथा सातवीं शक्ल को जोड़कर नई शक्ल बनायें।

यदि वह शक्ल ‘दाखिल’ अथवा ‘साबित’ हो तो ‘गर्भ’ अवश्य है – यह कहना चाहिए और यदि ‘खारिज’ अथवा ‘मुन्किलीव’ हो तो गर्भ नहीं है- यह समझना चाहिए।

गर्भ में पुत्र है या कन्या

यह पूछे जाने पर कि ‘‘ गर्भ में पुत्र है अथवा कन्या?’’ तो पहले पाँसे डालकर प्रस्तार बनायें। फिर प्रस्तार की पहली और सातवीं शक्ल को जोड़कर एक शक्ल तैयार करें। तत्पश्चात् उसे पाँचवी शक्ल से जोड़कर जो शक्ल तैयार हो, वह यदि पुरुष संज्ञक हो तो गर्भ में पुत्र, स्त्री संज्ञक हो तो गर्भ में कन्या और नपुसंक संज्ञक हो तो भी गर्भ में कन्या है- यह कहना चाहिए।

 ‘सन्तान दिन में होगी अथवा रात में?’

इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए पहले प्रस्तार बनायें। प्रस्तार की पहली शक्ल दिन में बली हो तो दिन में, रात में बली हो तो रात में और संध्याओं में बली हो तो सन्ध्या के समय सन्तान का जन्म होगा यह कहना चाहिए।

प्रस्तार के नवें घर की शक्ल जिस राशि की हो, उसी राशि की लग्न में सन्तान का जन्म होगा। यह समझना चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति यह प्रश्न करे कि उसकी सन्तान धनी होगी या दरिद्र?

तो पहले पांसे डालकर प्रस्तार बनायें। फिर पाँचवी तथा आठवीं शक्ल को जोड़कर जो शक्ल उत्पन्न हो, उससे पन्द्रहवीं शक्ल को जोड़कर एक शक्ल बनायें। यदि वह शक्ल शुभ हो तो सन्तान धनी होगी। मध्यम हो तो थोड़े धन वाली होगी और अशुभ हो तो दरिद्र होगी- यह कहना चाहिए।

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