पंचतत्व और भवन सुख

व्यक्ति के जीवन की मुख्य जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान में रोटी और कपड़े के अतिरिक्त जो मकान है वह व्यक्ति के पूरे जीवन पर असर डालती है। इसीलिये हमारे वेदों में, पुराणों में, उपनिषदों में इस पर बहुत सारा वर्णन मिलता है। ऋग्वेद और अथर्ववेद में वास्तुशास्त्र के अनेकों सूत्र मिलते है।

भवन व जमीन के कारण जीवन में आने वाली विपत्तियों और समृद्धि के अनेकों उदाहरण प्रत्यक्ष में दिखते है। न केवल हमारे ग्रन्थों में इनका उल्लेख मिलता है अपितु चीन, मिस्र इत्यादि पुरानी सभ्यताओं में भी इसके प्रमाण मिलते हैं।

वास्तुशास्त्र का मुख्यत: नियम यह है कि जहाँ हम रहते है वहाँ दिशाओं, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, चुम्बकीय शक्ति, गति एवं पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति के कारण पडऩे वाले प्रभाव हमारे जीवन की उन्नति व समृद्धि में सहायक हों।

प्रत्येक मनुष्य जो भिन्न-भिन्न राशियों और ग्रह दशाओं में जन्म लेता है, उसमें अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी इन पाँच तत्वों में से किसी एक तत्व की प्रधानता रहती है, उन्हीं पाँच तत्वों को गृह निर्माण में मनुष्य की तत्व प्रधानता के अनुसार सामंजस्य बैठाया जाता है जिससे गृहस्वामी को सुख, समृद्धि का लाभ प्राप्त होता है। भिन्न प्रकार की बनावट, रंग, अंक या मंत्र विशेष प्रकार की तरंगें उत्पन्न करते है जिसका गृहस्वामी पर विशेष अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके अनुसार रंगों का चयन इत्यादि करना चाहिये।

प्रत्येक दिशा से संबंधित ग्रह होता है जैसा कि पूर्व का सूर्य, आग्नेय का शुक्र, दक्षिण का मंगल, नेऋत्य का राहु-केतु, पश्चिम का शनि, वायव्य का चन्द्र, उत्तर का बुध और ईशान का गुरु।

भवनसुख हेतु वास्तु दोष निवारण के लिये ग्रह निदान के अतिरिक्त यन्त्रों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है।

यन्त्रों में भी पाँच प्रमुख तत्व होते है।

  1. पृथ्वी तत्व वाले यन्त्रों की भवन में स्थापना से भवन में रहने वाले प्राणियों को स्थिरता, वैचारिक शान्ति, धैर्य व विभिन्न सुखों की प्राप्ति होती है।
  2. जल तत्व वाले यन्त्रों की मकान में विधिपूर्वक स्थापना से घर के लोगों को सम्मान, प्रेम, भाईचारा व ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  3. अग्नि तत्व वाले यन्त्रों की मकान में विधिपूर्वक स्थापना से घर के समस्त लोगों पर विशेष परिस्थितियों में विशेष प्रभाव मिलते है। चूंकि अग्नि को उत्तेजना, क्लेश, विनाश और उग्र कर्म का आधार माना गया है, परन्तु भयानक कष्टों के समाधान का भी इसे आधार माना गया है, अत: उपर्युक्त ज्ञाता की सलाह से इसके द्वारा लाभ की प्राप्ति की जा सकती हे।
  4. वायु तत्व वाले यन्त्रों की विधिपूर्वक स्थापना से अनेकों लाभ की प्राप्ति की जा सकती है परन्तु इसके विपरीत होने से अपमान, विक्षिप्ता और दुखों की वृद्धि होती है। अत: इसे भी इसकी पूर्ण समझ रखने वाले की सलाह के पश्चात ही स्थापना करनी चाहिये।
  5. आकाश तत्व वाले यन्त्रों की विधिपूर्वक स्थापना से अध्यात्म, वैराग्य, चिन्तन, अध्ययन इत्यादि गुणों की वृद्धि होती है।

इस प्रकार व्यक्ति विशेष की आवश्यकतानुसार भवन की प्रकृति, स्वयं की प्रकृति और यन्त्र की प्रकृति की परस्पर सामंजस्य से अत्यधिक लाभ की प्राप्ति की जा सकती है।

इन नव ग्रहों का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है, व्यक्ति विशेष के लिये विशिष्ट ग्रह की शांति करवाने या करने से भी भवन की सुख प्राप्ति होती है।

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