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वास्तु संबंधी शकुन

ईश्वर की रची सृष्टि अनन्त रहस्यमयी है। इसका पार पाना असंभव ही है, फिर भी प्रकृति समय-समय पर निश्चित संकेतों द्वारा भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास कराती है। इन संकेतों को समझकर हम भी भविष्य में घटने वाली घटनाओं को जान सकते हैं। वास्तु शास्त्र में भी इस निमित्त काफी कुछ बताया गया है। यथा वृहत्संहिता में कहा गया है-

सूत्रच्छेदे मृत्युः कीले चावाडमुखे महान रोगः।
गृहनाथ स्थपतीनां स्मृतिलोपे मृत्युरादेश्यः।।

अर्थात् सूत पसारते समय टूट जाए तो गृहस्वामी की मृत्यु हो जाती है। यदि कील गाड़ने के समय उसका मुख नीचे की ओर हो जाए तो गृहस्वामी के साथ कारीगर को भी हानि उठानी पड़ती है।

स्कन्धाच्चयुते शिरोरूक कुलोपसर्गोऽपवर्जिते कुम्भे।
भग्नेऽपि च कर्मिवधश्चयुते कराद्गृहपते मृत्युः।।
 

जल का कलश ले जाते समय कंधे से गिर जाए तो गृहस्वामी को मस्तिष्क संबंधी पीड़ा होती है। कलश हाथ से छूट जाए तो गृहस्वामी की मृत्यु हो जाती है। यदि कलश फूट जाए तो कारीगर अथवा मजदूर की मृत्यु हो जाती है।

पुण्याहशड्खाध्ययानाम्बुकुम्भा विप्राश्च वीणापटहस्वनानि।
पुत्रान्विता स्त्री गुरवो मृदंगा वाद्यानि भेरीनिन्दाः प्रशस्ताः।।

गृह प्रवेश के समय मंत्र, शंख ध्वनि, पढ़ाई करते बच्चों का कोलाहल, ब्राह्मणों का झुंड, ढोलक, मृदंग, वीणा, भेरी के शब्द सुनाई दे अथवा जल का कलश ले जाते कोई स्त्री दिखाई दे तो यह गृहस्वामी के लिए अत्यन्त शुभ होता है।

इनके अलावा भी कई अन्य शकुन बताए गए हैं जिनके दिखाई देने पर गृहस्वामी की इच्छाएं पूर्ण होती हैं तथा नए गृह में प्रवेश करते ही उसका भाग्योदय होता है। यथा गाय, ब्राह्मण, रथ, हाथी, कन्या, रानी, शंख, बांसुरी की ध्वनि आदि सुनाई देना शुभ है। सुंदर वस्त्र पहने कोई कन्या, मृग (हिरण), चंदन, दर्पण, दूध, दही, मछली, वेश्या, हाथी, घोड़ा, सुहागन स्त्री दिखाई दे तो इन्हें भी शुभ माना गया है।

वास्तु ग्रंथों में शकुनों के अतिरिक्त अपशकुन भी बताए गए हैं।

कंटकाकीर्ण वृक्षैर्याधरा नित्यं प्ररोहिणीं
ग्रस्ता सदा विवादैः सा नैव शान्तिं प्रयच्छति।

अर्थात् जिस भूमि पर कांटेदार पौधे अधिक उगे हुए हो अथवा उखाड़ने के पश्चात फिर उग आते हैं तो उस भूमि का परित्याग कर देना चाहिए। वहां रहने वालों के सदैव झगडे होते रहते हैं, वहां रहने वालों को कभी शान्ति प्राप्त नहीं होती।

इसी प्रकार समरागंण सूत्रधार में भी बताया गया है-

नवकर्माणि यत्किञ्चित भज्यते यदि वा नमेत।
वि(ध्व)स्ते वा स्फुटै वापि कुटुम्बिमरणम् ध्रुवम।
फलं सर्वनिमित्तेषु शुभं वा शुभम्।
संवत्सरं परं ग्राह्मं नवकर्मकृते गृहे।।

अर्थात् नए भवन के निर्माण में कोई वस्तु खंडित जाती है अथवा नष्ट हो जाती है तो गृहस्वामी को हानि उठानी होती है।

यदि देव प्रतिमा पर माला चढ़ा रहे है तथा वह गिर जाए, दूसरी बार चढ़ाएं और फिर गए जाए तो समझिए कि शीघ्र ही आपका किसी से विवाद अथवा झगड़ा होने वाला है। यदि ऐसा आपके अपने घर के मंदिर में हो तो आप के घर पर शत्रुओं की नजर पड़ चुकी है।

इसी प्रकार गृह-मन्दिर में देव प्रतिमा अथवा तस्वीर खंडित हो जाए तो यह भी बड़ा भारी अपशकुन होता है। ऐसी खंडित प्रतिमा को तुरंत ही अपने गृह-मन्दिर से हटा कर जल में प्रवाहित कर दे अथवा किसी पीपल (या बड़) के पेड़ के नीचे रख दे। घर में कोई तस्वीर गिर जाए या घर के मन्दिर का कलश टूट जाए तो यह भी अपशकुन है।

भवन की दीवारों पर क्रैक आना भी अपशकुन है। इसका अर्थ है कि शीघ्र ही घर में किसी को कमर, पीठ या गले की बीमारी होने वाली है। भवन की छत से प्लास्टर का गिरना भी घर में विपत्ति आने का संकेत है। भवन के फर्श में क्रैक आना अथवा रसोई की स्लैब का अचानक तड़कना भी विपत्ति आने की सूचना देता है।

कदाचित मूसलं गेहे सहसा खण्डित भवेत।
महामयस्य संकेत कुरूते तद्धि निश्चितम्।।

यदि घर में रखा हुआ मूसल, खिड़कियों के शीशे, पत्थर का चकला, दर्पण आदि टूट जाए तो उन्हें घर में न रखें वरन उन्हें तुरंत घर से बाहर निकाल दें अन्यथा घर में दरिद्रता और क्लेश का वास होता है। घर में पलंग, तख्त या कुर्सी का कोई अंग टूट जाए तो यह भी आने वाली किसी बड़ी मुसीबत को दर्शाता है। इन्हें तुरंत ठीक करवा लेना चाहिए।

प्राचीन ग्रंथों में शकुन-अपशकुनों पर विचार करते हुए जानवरों पर भी काफी कुछ अध्ययन किया गया है। विशेष तौर पर वृहत्संहिता में इस बारे में काफी कुछ कहा गया है।

यानासन शय्यानिलयनं कपोतस्य पद्यविशनं वा।
अशुभप्रदं नराणां जाति विश्वेदेन कालोऽन्यः।।

अर्थात् कबूतर का घर में बैठना, वाहन, आसन, पलंग आदि पर बैठना या घर में प्रवेश करना उस भवन में निवास करने वालों के लिए शुभ माना गया है। यदि कबूतर सफेद रंग का हो तो एक वर्ष तथा चितकबरा हो तो छह माह तक उस घर में शुभ कार्य होते हैं।

तद्द्रव्यमुपनयेत्तस्य लब्धिरपहरति चेत्प्रणाशः स्यात्।
पीतद्रव्ये कनकं वस्त्रं कापीसिके सिते रूपयम्।।

यदि कौवा कहीं से अपनी चोंच या पंजों में कोई वस्तु उठा कर ले आए और घर में डाल दे तो शीघ्र ही द्रव्य (धन) लाभ होता है। पीली वस्तु लाने पर स्वर्ण लाभ होता है। सफेद वस्तु या सूती कपड़ा लाए तो चांदी का लाभ होता है। यदि कौवा कोई रत्न गिरा दे तो उच्च पद प्राप्त होता है, कच्चा माँस गिरा दे तो शीघ्र ही धन लाभ होता है।

किसी स्त्री के सिर पर रखे जल से भरे घडे पर यदि कौआ बैठ जाए तो शीघ्र ही उस स्त्री को धनलाभ होता है। घड़े पर बीट कर दे तो अन्न लाभ होता है परन्तु घड़े में चोंच मार दे तो उस स्त्री को संतान संबंधी पीड़ा भोगनी पड़ती है। यदि कोई उड़ता हुआ कौआ किसी घर में अचानक गिर जाए तो वहां रहने वालों का भाग्य चमक उठता है।

यदि कौवा घर में लाल या जली हुई वस्तु लाकर डाल दे तो घर में आग लगती है, यदि किसी के सामने लाल वस्तु गिरा दे तो उसे जेल जाना पड़ सकता है अथवा अपयश मिलता है। घर में कोई हड्डी, केश आदि लाकर किसी पलंग, चारपाई पर डाल दे तो उस घर में मृत्यु होती है। यदि किसी के घर कौआ मरा हुआ चूहा डाल दें तो उस घर में क्लेश होता है। कई कौए लड़ रहे हो तो उस घर पर बड़ी विपत्ति आती है।

वास्तु शास्त्र में कौए और कबूतर के समान ही अन्य पशु-पक्षी भी शकुन-अपशकुन बताते हैं। उदाहरण के लिए घर में काली चींटियों का होना धन का आगमन बताता है परन्तु लाल चींटियां धन हानि की संकेत है। घर में चूहों का होना बीमारी की संभावना को बताता है। घर के द्वार पर हाथी सूंड ऊंची करें या कोयल बोले या गाय रंभाएं तो यह भी शुभ संकेत है। घर में छछून्दर का घूमने से गृहस्वामी को शीघ्र ही धनलाभ होता है। यदि बिल्ली दूसरी जगह जन्मे बच्चों को घर में लेकर आएं तो शीघ्र ही कोई शुभ समाचार मिलता है।

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